डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या के रत्नाकर शोधपीठ की स्थापना वर्ष 2018 में हुई। जगन्नाथ
दास ‘रत्नाकर’ ब्रजभाषा की काव्य परम्परा के महान स्तम्भ हैं। सघन संवेदना और तीव्र अनुभूति की सूक्ष्मता और कविता
की छन्दराम परम्परा का प्रौढ़गत शिल्प वैभव आपके काव्य की प्रतिनिधि विशेषताएं हैं। भारतीय लोक मानस और सम्पूर्ण
भारतीय साहित्य में ‘गोपी-उद्धव संवाद’ को अपने ‘उद्धव-शतक’ नामक काव्य संग्रह में आपने नया मनोवैज्ञानिक आयाम
देकर इस प्रख्यात और चर्चित संवाद को नया रूप, स्वरूप और क्लेवर प्रदान किया है। उद्धव-शतक के कई पद लोगों को
कंठस्थ हैं। वह समय समय पर उद्धृत भी किए जाते हैं, जो अपने भाव प्रवणता के कारण अत्यंत सुकर और प्रीति कर
लगते हैं। वे मनुष्य की चेतना का परिष्कार करते हैं और उसकी सहृदयता और भावनाशीलता, हार्दिकत का विस्तार करते
हैं। आज आदमी की क्रूरता, बर्बरता, हिंसा-भाव जहां बढ़ता जा रहा है स्नेह और प्रीत की अंतः नदी सूखती जा रही है,
करुण में भी वह दरिद्र होता जा रहा है। ऐसे कठिन समय समाज में रत्नाकार का काव्य अत्यंत प्रासंगिक है। अतः रत्नाकार
की काव्य संवदेना से छात्रा छात्राओं और समाज को लगातार अनुप्राणित करते रहने की आवश्यकता की सम्पूर्ति के लिए
प्रकृत शोध पीठ अधोलिखित कार्य योजना पर काम करता रहेगा।
रत्नाकार शोधपीठ का ध्येय-
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रत्नाकार-साहित्य और उसकी चित्रावली की सुलभता निश्चित करना। |
रत्नाकार पर देशभर में हुए शोध कार्य की सूची और सामग्री प्राप्त करना। |
रत्नाकार पर हुए शोध एवं समीक्षा के ग्रंथों का क्रय किया जाना। |
गोष्ठी एवं सेमिनार आयोजन। |
रत्नाकार के काव्य का पाठ और पाठालोचन तथा पुनर्पाठ हेतु वर्ष में दो बार सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन। |
प्रतिवर्ष रत्नाकार जी के पैतृक गांव का भ्रमण। |
रत्नाकार साहित्य के विशेषज्ञों की खोज और उनसे भेंट वार्ता की रिकॉर्डिंग और प्रकाषन। |
कविता की छांदस परंपरा के विस्तार और विकास के लिए समुचित पहल प्रयास करना। |
उद्धव-शतक के युद्ध एवं सस्वर पाठ का कैसेट तैयार करना और काव्य प्रेमियों को सुलभ कराना। |
रत्नाकार शोध पीठ से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना। |
‘ब्रजभाषा काव्य की परंपरा और रत्नाकार का प्रदेय’ के आलोक में शोध और समीक्षा को सतत बनाए रखना आदि। |
डॉ. सुरेन्द्र मिश्र
(सह आचार्य) प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग समन्वयक
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